चन्द्र मंगल योग : भविष्य प्रारब्ध कर्मो के अच्छे-बुरे परिणामों की फल श्रुति होता है।
जीवन में अच्छे-बुरे का हेतु कर्म सिद्धान्त ही है।
हम अपनी संकल्प शक्ति के बल पर कर्मफलों को अपने अनुसार भोगने का प्रयास करते हैं
अथवा अपने आपको भाग्य पर रहने के लिए छो़ड देते हैं
अहंकार किसी व्यक्ति के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है।
जीवन में अपनी संकल्प शक्ति के बल पर जीवित रहते हुए हम संचित कर्मो को
प्रारब्ध कर्मो में बदलकर जन्म-जन्मान्तर तक भोगते रहते हैं।
इस संसार की भी क्रियाओं पर ग्रहों पर प़डने वाली किरणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
किसी भी भौतिक क्रिया की पूर्णता के लिए दो प्रकार की पारस्परिक किरणों का होना आवश्यक है।
ये सभी क्रियाएं ग्रहों की गति के अनुरूप बदलती रहती हैं
चन्द्रमा के महत्वपूर्ण लक्षण हमारे शरीर में तरल रूप में विद्यमान हैं
जिनमें कफ, रूधिर, मन, बाई आंख, भावनाएं मनोवैज्ञानिक समस्याएं और माँ
आदि महत्वपूर्ण हैं। किसी जातक की कुंडली में अष्टम भाव में स्थित चन्द्रमा
बालारिष्ट का कारक होता है।
शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित क्षीण चन्द्रमा पागलपन और उन्माद देता है
जबकि शनि, केतु और चन्द्रमा की युति व्यक्ति को पागल बना देती है।
लग्न आत्मा होता है और चन्द्रमा प्राण होते हैं।
हम सूर्य से अहं और चन्द्रमा से मन ग्रहण करते हैं
और अहं व मन का संयोग हमारे व्यवहार में सुधारलाताहै
ये दोनों ग्रह सूर्य और चन्द्र ज्योतिष में ऎसे ग्रह हैं
जिनसे व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार का निरूपण आसानी से किया जा सकता है।
वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा पर बहुत बल दिया गया है
क्योंकि चन्द्रमा हमारे जागृत और सुप्त दोनों प्रकार के मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
जहां तक मनुष्य के स्वभाव को समझने की बात है वास्तव में मन ही वह शक्ति है
जो ग्रहों और वातावरणीय कारणों से आने वाली किरणों को ग्रहण करके उन पर
प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करता है। किसी जातक की कुंडली में शुभ स्थित
चन्द्रमा अच्छे स्वास्थ्य और बलवान मन का सूचक है।
मन ही सभी प्रकार की क्रियाओं का कारक है।
जैसा कि जॉन मिल्टन कहते हैं कि मन का अपना स्थान है, वह चाहे तो नरक को
स्वर्ग और स्वर्ग को नरक बना सकता है। गोचर में चन्द्रमा की प्रधान भूमिका
रहती है।
चन्द्रमा मंगल को सम मानते हैं
जबकि मंगल, चन्द्र को मित्र मानते हैं।
दोनों ही ग्रह भिन्न-भिन्न प्रकृति और अलग चरित्रगत विशेषताएं रखते हैं।
सूर्य इन दोनों ग्रहों के मित्र हैं परन्तु शनि उन्हें शत्रु मानते हैं।
शुक्र भी चन्द्र को शत्रु मानते हैं। बुध मंगल के शत्रु हैं। चन्द्र सफे द
(सित्वर्णी) रंग के हैं जबकि मंगल लाल (रक्तगौर) रंग के हैं।
चन्द्रमा में स्त्री तत्व और मंगल में पुरूषोचित गुण रहते हैं।